चाणक्य नीति दुश्मन को दोस्त कैसे बनाएं ।chanakya niti how to make enemy a friend
हमारे देश में चाणक्य को महान इसीलिए माना जाता है कि वह ज्ञान के भंडार थे उनके पास हर समस्या के समाधान था तो आज हम बताएंगे कि चाणक्य ने किस तरह से दुश्मन को अपना सच्चा दोस्त बनाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को शिक्षा दिए थे । आपने देखा होगा कि ज्यादातर दोस्त ही दुश्मन बनते हैं जो अपना सबसे करीबी होता है वही दुश्मन हो जाता है जिसे आप अपने दिल की हर बात बताते हैं अपने दुख सुख में उसे देखना चाहते हैं लेकिन कुछ ऐसी बात हो जाती हैं जिसे वह रूठ जाता है और आपका सबसे बढा दुश्मन हो जाता यहां तक कि आपकी जान लेने तक कि सोचने लगता है लेकिन चाणक्य नीति कुछ ऐसी है कि दुश्मनों को भी अपना दोस्त बना लेती हैं आइए इस कहानी से समझते हैं चाणक्य ने किस तरह से दुश्मन को अपना दोस्त बनाया।
दुश्मन को दोस्त बनाने का क्या तरीका है
दुश्मन को दोस्त बनाने का तरीका आपको इस कहानी से समझ में आएगा चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को ऐसी शिक्षा दिया चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने दुश्मन को इतना सच्चा दोस्त बना लिया कि उसके लिए उसके दुश्मन ने जान भी दे दिए जो दुश्मन उसके जान के पीछे पड़े थे उसके लिए खुद का जान दे दिए यह कैसे संभव हुआ यह हमारे देश के महान चाणक्य के वाक्यों के द्वारा संभव हुआ चंद्रगुप्त मौर्य को एक अच्छा शासक बनाना था इसलिए उसे हर कठिनाइयों से गुजारना पड़ा जिस गुरुकुल में चंद्रगुप्त पढ़ते थे वहां राजाओं के लड़के पढ़ते थे जो चंद्रगुप्त शिक्षा से लेकर हर कार्य में आगे रहता था इसी वजह से गुरुकुल में पढ़ रहे अन्य छात्र चंद्रगुप्त को अपना दुश्मन समझते थे हर वक्त उसे मारने के फिराक में थे जिससे चंद्रगुप्त भी परेशान हो गया था सारी बातें अपने गुरु चाणक्य से चंद्रगुप्त ने बताएं फिर चाणक्य ने यह बताया की दुश्मनों को दोस्त बना लिया जाए तो आपकी पूरी जिंदगी भर साथ देंगे कुछ ऐसा ही हुआ चंद्रगुप्त के साथ एक बार तो चंद्रगुप्त के दोस्त ने उसे पहाड़ से नीचे फेंक दिए थे यह बात चाणक्य को पहले से ही मालूम था इस चाणक्य ने नीचे ही चंद्रगुप्त को बचाने के लिए व्यवस्था कर दिए थे लेकिन चाणक्य के द्वारा बताए गए बातो को चंद्रगुप्त ध्यान रखता गया एक बार ऐसा हुआ कि जब चंद्रगुप्त को कुछ छात्र मारना चाहे तो स्वयं वह गड्ढे में गिरने लगे जिसे चंद्रगुप्त ने अपनी जान पर खेलकर उनको बचाया लेकिन फिर भी उन राजकुमारों को चंद्रगुप्त के प्रति कोई भाव नहीं हुआ फिर गुरुकुल के द्वारा छात्रों को जंगल में भेजा गया प्रशिक्षण के लिए जिसमें सभी छात्र मिलकर चंद्रगुप्त का विरोध करने लगे सभी मिलकर चंद्रगुप्त को मारना चाहते थे लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सभी छात्रों पर संकट आ गई यह थी कि लंबे समय से छात्र प्यासे थे और पानी की जरूरत थी पानी जहां था वहां एक भूखा शेर था वहां कोई नहीं जाना चाहता था लेकिन अपनी जान दांव पर लगाकर फिर एक बार चंद्रगुप्त ने उन छात्रों की जान बचाई तभी से सारे छात्र चंद्रगुप्त को अपना मसीहा मानने लगे और कुछ छात्र ऐसे थे कि चंद्रगुप्त के लिए अपनी जान दे दिए थे दे ।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को ऐसी कौन सी शिक्षा दी ।
चाणक्य ने यह बताया कि चाहे कोई कितना भी दुश्मन हो आप उसे वह दुश्मनी करता है तो आप उसे शत्रु के भाव से ना देखें अपनी दोस्त के भाव से देखें अगर वह आपको गाली दे रहा है तो उसको इग्नोर करें आप उसकी अच्छाइयों को देखें उस पर समस्या हो तो आप सहयोग करें चंद्रगुप्त ने यही किया और पूरे भारत का राजा बन गया
आप अपने दुश्मन को दोस्त कैसे बनाएं
जैसे ऊपर आपने आर्टिकल में पड़ा की अगर आपके साथ कोई दुश्मनी निभा रहा है तो उसके साथ आप मित्रता का भाव रखिए लेकिन उससे सतर्क रहिए कभी भी आपके साथ वह घात कर सकता है कभी-कभी तो ऐसा होता है कि आपका शत्रु मित्र बनकर आपकी जान लेने की सोचने लगता है तो आपको शत्रु को दोस्त बनाने से पहले कई पहलुओं पर ध्यान रखनी चाहिए अगर आप उसे मित्रता के भाव रखना चाहते हैं तो उसके दुख में उसके साथ खड़ा रहिए साथ में यहभी ध्यान दें कि आपके प्रति उसकी क्या सोच है अगर वह आपके प्रति दुश्मनी रखता है तो आपसे कभी नजर मिलाकर बात नहीं करेगा अगर वह दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाता है तो आप से नजर मिला कर बात करेगा और अपने दिल की बात आपसे बताएगा । आपको भी उसकी हर बात को गहनता से ध्यान देना चाहिए और उसके साथ अच्छी मित्र की तरह व्यवहार करना है इसे आपका दुश्मन भी आपका दोस्त हो जाएगा ।
यही कहती है चाणक्य नीति चाणक्य वह ज्ञानी थे जो एक निर्बल बालक को अखंड भारत का राजा बना दिए थे धनानंद को पराजित कर ।