deoria news देवरिया की 13 साल की लड़की की जान की कीमत 10 करोड़ मां बाप ने बताएं

पूरी कहानी देवरिया के अबूबकर नगर रेलवे स्टेशन समीप 13 साल के मासूम बच्ची की धरती पर जन्म लेने वाले हर इंसान को जीने का हक है, लेकिन कभी कभी जन्म से ही खतरनाक बीमारियां इंसान को तिल तिल मरने पर मजबूर कर देती हैं। ऐसा मुसिबतों का पहाड़ यूपी के देवरिया के एक परिवार पर ढहा है। जहां एक मामूम बच्ची दुर्लभ स्पाइनल मस्कुलर एट्रापी-2 नामक बीमारी से जूझ रही है। जिसके इलाज के लिए करोड़ों रुपए की जरुरत है। बच्ची का इलाज बैंगलोर बैप्टिस्ट अस्पताल में चल रहा है। खास बात है कि बच्ची को लगने वाले इंजेक्शन की कीमत करोड़ों में है, और ये सिर्फ अमेरिका में ही मिलता है, लेकिन परिवार की माली हालत ऐसी नहीं है कि वो बच्ची का इलाज करा सके। अलबत्ता परिवार ने अब पीएम मोदी, सीएम योगी और आम जनता से हाथ जोड़कर अपील की है कि वो परिवार की मदद करें। ताकि बच्ची की जिंदगी बच सके। पीडित बच्ची के पिता ने आम जनता से अपील की है कि धर्म- जात से ऊपर उठकर लोग बच्ची की मदद करें।

वीओ-वहीं आंखों में आंसू लिए मां ने पीएम मोदी और सीएम योगी से अपील की है कि वो बच्ची को बचा लें, क्योंकि एक मध्यम वर्ग के परिवार के लिए 10 करोड़ जमा करना मुश्किल हैं। लिहाजा अगर देश की आवाम चाहे तो उसकी बच्ची की जान बच जाएगी। हालांकि उन्होंने कहा कि फंड जमा करने का काम कुछ लोग कर रहे हैं, लेकिन जबतक देश की जनता नहीं जुड़ेगी उनकी बच्ची का इलाज नहीं हो पाएगा। वहीं बच्ची के शौक सुनकर हर कोई हैरान रह गया। बच्ची चाहती है कि वो साइंटिस्ट बने, देश का नाम रोशन करें। वो एक सामान्य जिंदगी जीना चाहती है। अपने पैरों पर उठकर दूनिया देखना चाहती है।

वीओ-क्या है स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी खतरनाक बीमारी ?
बता दें कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एक गंभीर बीमारी है, जो सबसे अधिक शिशुओं और छोटे बच्चों को प्रभावित करती है। इसे SMA नाम से भी जानते हैं। SMA के शिकार बच्चे अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल सही तरीके से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि ये बीमारी उनकी रीड़ की हड्डी में नर्व सेल्स को खराब कर देती है। जिसके कारण दिमाग उन सेल्स को संदेश भेजना बंद कर देता है, जो मांसपेशियों को नियंत्रित करती हैं। SMA में बच्चों की मांसपेशियां पूरी तरह कमजोर और सिकुड़ जाती हैं, जिससे स्थिति कई बार इतनी खराब हो जाती है कि पीड़ित बिना सहारे के बैठ और चल भी नहीं पाता है। बीमारी में अधिकतर उन्हें निगलने और सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है

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