देवरिया में मेले का बदलता स्वरूप: मनोरंजन से व्यापार तक, जेब पर भारी और सुरक्षा पर सवाल


देवरिया जनपद में इन दिनों मेला लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, लेकिन इसका स्वरूप अब पहले जैसा नहीं रहा। कभी मेला सामाजिक मेल-मिलाप, पारिवारिक आनंद और लोकसंस्कृति से जुड़ा होता था। लोग पूरे परिवार के साथ मेला घूमने जाते थे—जेब में पैसा हो या न हो, माहौल, रौनक और अपनापन ही सबसे बड़ी पूंजी होता था। आज वही मेला धीरे-धीरे शुद्ध व्यापार का रूप लेता दिखाई दे रहा है, जहां हर कदम पर खर्च और हर सुविधा की कीमत तय है।


फिलहाल जनपद में चीनी मिल ग्राउंड और महाराजा अग्रसेन कॉलेज परिसर में मेले लगे हुए हैं। इन मेलों में प्रवेश के लिए ₹20 का टिकट लिया जा रहा है। यदि कोई व्यक्ति दोपहिया या चारपहिया वाहन से आता है, तो पार्किंग के नाम पर अलग से ₹20 चुकाने पड़ते हैं। मेला परिसर के भीतर खाने-पीने और खरीदारी की कीमतें बाजार से कहीं अधिक हैं, जिससे सामान्य और मध्यमवर्गीय परिवारों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है।


लोगों का कहना है कि मेला देखने की चाह तो है, लेकिन बढ़ते खर्च के कारण परिवार के साथ मेला घूमना अब पहले जितना सहज नहीं रहा। वहीं आयोजकों का तर्क है कि बढ़ती लागत, सुरक्षा, बिजली, सफाई और कर्मचारियों के खर्च के कारण शुल्क लेना मजबूरी बन गया है।


एक और महत्वपूर्ण पहलू सुरक्षा से जुड़ा है। मेले में लगे बड़े-बड़े झूले, इलेक्ट्रिक से चलने वाली टॉय ट्रेन और अन्य मनोरंजन साधन बच्चों और युवाओं को आकर्षित करते हैं, लेकिन इनकी नियमित तकनीकी जांच और सुरक्षा मानकों को लेकर सवाल उठते हैं। किसी भी प्रकार की लापरवाही गंभीर हादसे का कारण बन सकती है।
मेले की वजह से आसपास की सड़कों पर जाम की स्थिति भी बन रही है। खासकर देवरिया ओवरब्रिज पर लोग खड़े होकर मेला देखते नजर आते हैं, जिससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ट्रैफिक नियंत्रण और भीड़ प्रबंधन पर और ध्यान दिए जाने की जरूरत है।


सबसे अहम सवाल यह है कि इन मेलों को प्रशासनिक अनुमति किन शर्तों पर दी गई है, सुरक्षा के क्या मानक तय हैं और निगरानी की व्यवस्था कैसी है—इस संबंध में स्पष्ट जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं दिखती। ऐसे में पारदर्शिता और नियमित निरीक्षण आवश्यक हो जाता है।


कुल मिलाकर, देवरिया में मेला आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है, लेकिन इसके साथ जुड़े आर्थिक बोझ, सुरक्षा और यातायात जैसे मुद्दों पर संतुलित और जिम्मेदार व्यवस्था जरूरी है, ताकि मेला फिर से वही बने—जहां मनोरंजन हो, सुरक्षा हो और हर वर्ग का परिवार बिना डर और दबाव के आनंद ले सके।

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