नालंदा विश्वविद्यालय का नाम सुनते ही मन में भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्ने जाग उठते हैं। दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय, नालंदा, प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण है। यहां हम नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना, इसकी ख्याति, और इसके दुखद विनाश की कहानी पर चर्चा करेंगे।
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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और ख्याति
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह विश्वविद्यालय बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित था और दुनिया भर के छात्रों और विद्वानों के लिए शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन गया। यहाँ पर 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे।
इस विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी, जिसमें धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, विज्ञान और कला शामिल थे। नालंदा ने भारत और एशिया के विभिन्न हिस्सों से छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। इस विश्वविद्यालय की पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ में लाखों पांडुलिपियाँ और किताबें थीं, जो उस समय के ज्ञान का भंडार थीं।
विश्वविद्यालय की संरचना
नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर विशाल और सुंदर था। इसमें कई अध्ययन कक्ष, पुस्तकालय, ध्यान कक्ष और उद्यान थे। यहां का प्रमुख पुस्तकालय तीन हिस्सों में बंटा हुआ था – रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। इस पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियाँ और ग्रंथ थे, जिन्हें दुनिया के विभिन्न कोनों से लाया गया था।
नालंदा का विनाश
नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश भारतीय इतिहास का एक दुखद अध्याय है। 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी नामक तुर्की आक्रमणकारी ने इस विश्वविद्यालय पर हमला किया और इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया। कहा जाता है कि नालंदा की पुस्तकालय में आग लगा दी गई थी और वह आग कई महीनों तक जलती रही। इसमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ नष्ट हो गए, जिससे भारत का बहुत सारा ज्ञान ध्वस्त हो गया।
नालंदा का पुनर्जन्म
21वीं शताब्दी में, भारतीय सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। 2010 में, नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित हुआ और 2014 में नालंदा विश्वविद्यालय ने फिर से अपने दरवाजे खोले। नए नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा की शिक्षण परंपरा को पुनर्जीवित करना और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ उसे समाहित करना है।
नालंदा विश्वविद्यालय न केवल प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली का प्रतीक था, बल्कि यह एक ऐसा स्थान था जहां विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों का संगम होता था। इसका विनाश भारतीय इतिहास की एक बड़ी क्षति थी, लेकिन इसका पुनर्जन्म हमें आशा और प्रेरणा देता है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को फिर से जीवंत कर सकते हैं।
Old photo of Nalanda University