ईरान और इज़राइल के बीच दशकों से चला आ रहा ‘छाया युद्ध’ अब अपने सबसे खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। अब तक यह लड़ाई प्रॉक्सी गुटों के जरिए लड़ी जाती थी, लेकिन हालिया घटनाओं ने इसे सीधा सैन्य टकराव बना दिया है। इससे न केवल मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ गई है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता गहराने लगी है।

इस तनाव की शुरुआत दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हुए हवाई हमले से हुई। इस हमले में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के एक वरिष्ठ जनरल समेत कई अधिकारी मारे गए थे। ईरान ने इसके लिए सीधे इज़राइल को ज़िम्मेदार ठहराया और कड़ी प्रतिक्रिया की चेतावनी दी।
13-14 अप्रैल की रात को ईरान ने पहली बार अपनी धरती से सीधे इज़राइल पर हमला किया। ईरान ने 300 से अधिक ड्रोन, क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। इज़राइल ने अपनी आधुनिक रक्षा प्रणालियों जैसे आयरन डोम और डेविड स्लिंग के जरिए इन हमलों को लगभग नाकाम कर दिया, और अमेरिका, ब्रिटेन व जॉर्डन जैसे सहयोगी देशों की मदद से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित की।
इसके बाद इज़राइल ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए ईरान के इस्फहान प्रांत में एक सैन्य हवाई अड्डे के पास हमला किया। यह हमला सीमित था और इसका उद्देश्य केवल यह संदेश देना था कि ईरान इज़राइल की पहुंच से बाहर नहीं है। इस कार्रवाई के जरिए इज़राइल ने तनाव को व्यापक युद्ध में बदलने से बचने की रणनीति अपनाई।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटनाक्रम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे अघोषित नियमों को तोड़ता है, जिनके तहत वे सीधे टकराव से बचते थे। अब यह संघर्ष खुले युद्ध की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस संघर्ष पर निगाहें टिकी हैं। अमेरिका ने इज़राइल की सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है लेकिन दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने भी मध्यस्थता के प्रयास तेज कर दिए हैं ताकि क्षेत्रीय युद्ध को रोका जा सके।
वहीं रूस और चीन ने इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव के लिए पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप को ज़िम्मेदार ठहराया है और शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
इस संघर्ष का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमलों और होर्मुज जलडमरूमध्य में संभावित रुकावट की आशंका से तेल की कीमतों में तेजी देखी जा रही है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ रहा है।
भविष्य को लेकर विशेषज्ञों की राय चिंताजनक है। कोई भी गलत कदम या बड़ा हमला इस क्षेत्र को पूर्ण युद्ध में झोंक सकता है। हिज़्बुल्लाह जैसे शक्तिशाली प्रॉक्सी गुटों के संघर्ष में पूरी तरह शामिल होने की संभावना बनी हुई है, जिससे लड़ाई कई मोर्चों पर फैल सकती है।
फिलहाल पर्दे के पीछे से राजनयिक प्रयास चल रहे हैं, लेकिन जब तक दोनों देश अपने रुख में नरमी नहीं लाते, तब तक मध्य पूर्व पर युद्ध के बादल मंडराते रहेंगे। यह संघर्ष अब केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पूरी दुनिया की शांति और आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।