देवरिया के एक सरकारी स्कूल में 80 बच्चे उस समय बीमार हो गए जब उन्हें दोपहर के भोजन में चने खिलाए गए थे। यह घटना तब सामने आई जब बच्चों ने रात में पेट दर्द, उल्टी और दस्त की शिकायत की और सुबह होते-होते उनकी हालत बिगड़ गई। इससे स्कूल प्रशासन में हड़कंप मच गया और तुरंत डॉक्टरों को बुलाया गया।
घटना का विवरण:
देवरिया के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को दोपहर के भोजन में चने परोसे गए थे। बच्चों को रात में पेट दर्द, उल्टी और दस्त होने लगे, जिससे उनकी तबियत बिगड़ गई। बच्चों के अभिभावकों को जब यह खबर मिली तो वे तुरंत स्कूल पहुंचे और इस घटना पर कड़ी नाराजगी जताई।
प्राथमिक चिकित्सा:
स्कूल प्रशासन ने बच्चों की बिगड़ती हालत को देखते हुए तुरंत स्थानीय डॉक्टरों को बुलाया। डॉक्टरों ने बच्चों का प्राथमिक उपचार किया और उन्हें आराम करने की सलाह दी। कुछ बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, जबकि अधिकांश बच्चों का उपचार स्कूल में ही किया गया।
अभिभावकों की प्रतिक्रिया:
इस घटना के बाद अभिभावक बेहद चिंतित हो गए और उन्होंने स्कूल प्रशासन से जवाबदेही की मांग की। उन्होंने कहा कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन से इस लापरवाही के लिए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
प्रशासनिक कार्रवाई:
स्कूल प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि चने ठीक से पके नहीं थे और संभवतः खराब हो चुके थे। इस लापरवाही के लिए खाद्य आपूर्ति करने वाले ठेकेदार को निलंबित कर दिया गया है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने का आश्वासन दिया गया है।
स्वास्थ्य जागरूकता और खाद्य सुरक्षा:
इस घटना ने स्कूलों में खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता की आवश्यकता को उजागर किया है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बच्चों को ताजे और सुरक्षित भोजन की आपूर्ति हो। स्कूलों में नियमित रूप से भोजन की गुणवत्ता की जांच होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
खाद्य आपूर्ति की निगरानी:
स्कूलों में खाद्य आपूर्ति की निगरानी के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा, जो यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाला भोजन मिले। इस समिति में स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और अभिभावकों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
शिक्षा और जागरूकता:
बच्चों और स्कूल स्टाफ को खाद्य जनित बीमारियों के लक्षण और प्राथमिक उपचार के बारे में जागरूक किया जाएगा। इसके लिए नियमित स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टर बच्चों और स्टाफ को स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जानकारी देंगे।