देवरिया जिले और संसदीय क्षेत्र की पहचान कभी गन्ने की खेती, चीनी मिलों की रौनक और किसानों के घर की खुशहाली से होती थी। इस क्षेत्र को कभी “चीनी का कटोरा” कहा जाता था। 1903 में एशिया की पहली चीनी मिल यहीं प्रतापपुर में स्थापित हुई थी, जो आज भी गर्व का विषय है। परंतु, वर्तमान में स्थिति बदल गई है। न अब वह चीनी का कटोरा रहा और न ही वह मिठास। अब प्रत्याशियों की जीत की मिठास की तलाश, मतदाताओं के कड़वे बोलों से धड़कनें बढ़ा रही हैं।
शहरी मतदाता भले ही चुप्पी साधे हुए हों, लेकिन ग्रामीण मतदाता बेबाकी से अपनी राय रख रहे हैं। सदर विधानसभा क्षेत्र के गौरीबाजार निवासी प्रेम पाल सिंह कहते हैं, “बदलाव बेहतरी का पर्याय होता है। यह बेहतरी लोकसभा सीट से हो सकती है, प्रदेश से हो सकती है और केंद्र से भी।” उनके अनुसार, मतदाताओं में जातीय अस्मिता का सवाल गहरा है, और चुनावी चर्चा में इस सवाल का महत्व साफ नजर आ रहा है।
इस बार भाजपा से शशांक मणि त्रिपाठी, इंडी गठबंधन से अखिलेश प्रताप सिंह और बसपा से संदेश यादव मैदान में हैं। हर प्रत्याशी अपने-अपने समर्थकों के बीच अपनी जीत की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
शहरी और ग्रामीण मतदाताओं का मिजाज
देवरिया कस्बे में चुनावी माहौल के बारे में बात करते हुए अमित पांडेय कहते हैं, “मुख्य मुकाबला भाजपा और इंडी गठबंधन में है। बसपा के प्रत्याशी भी काडर वोटरों के साथ यादव बिरादरी में पैठ बनाने की कोशिश में हैं।”
कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र के जोकवा में अमरावती कहती हैं, “हम मोदी और योगी के नाम पर मतदान करेंगे।” वहीं, अंबरीश चौरसिया का मानना है कि प्रत्याशी बोल्ड और बेबाक होना चाहिए। फाजिलनगर बाजार निवासी अशरफ का कहना है कि “इंडी गठबंधन की लहर है और कर्जमाफी की बात की जा रही है।”
देवरिया की राजनीतिक विरासत और चुनौतियां
देवरिया लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं: देवरिया सदर, रामपुर कारखाना, पथरदेवा, फाजिलनगर और तमकुहीराज। इन सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है। ओमप्रकाश तिवारी बताते हैं कि देवरिया जिले का गठन 1946 में हुआ और 1993 में इससे अलग होकर कुशीनगर जिले का गठन हुआ।
मुख्य मुद्दे:
- बंद चीनी मिलों का संचालन
- कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना
- रोजगार सृजन का प्रयास
- बाढ़ का स्थायी निदान
- शहर में रिंगरोड
- जिला अस्पताल का निर्माण
प्रत्याशी और उनकी चुनौतियां:
शशांक मणि त्रिपाठी (भाजपा): मजबूत राजनीतिक विरासत। प्रचार में विधायकों की मजबूत उपस्थिति का अभाव और कद्दावरों की आपसी खींचतान बड़ी चुनौती है।
अखिलेश प्रताप सिंह (कांग्रेस): पूर्व विधायक और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता। सपा के परंपरागत मतदाताओं के वोट की शिफ्टिंग और सपा नेतृत्व की नाराजगी बड़ी चुनौती है।
संदेश यादव (बसपा): जिला पंचायत सदस्य और राजनीतिक परिवार की पृष्ठभूमि। बसपा के काडर वोटरों को सहेजने और सजातीय मतदाताओं को अपने पाले में लाने की चुनौती है।
देवरिया का चुनावी माहौल बेहद रोचक है, जहां मतदाताओं के मुद्दे, प्रत्याशियों की रणनीतियाँ और जातीय समीकरण प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। सभी दल अपने-अपने समर्थकों को साधने और जीत की मिठास चखने की कोशिश में लगे हैं।