काशी: धर्म की नगरी में चिता भस्म की होली: विवादों से घिरी परंपरा


काशी: धर्म की नगरी काशी में होली का त्योहार रंगों से सराबोर हो गया है। मगर इस बार एक परंपरा ने विवादों को जन्म दे दिया है। कुछ युवा और युवतियां चिता भस्म की होली खेलने लगे हैं।

काशी के विद्वानों ने इस प्रथा का विरोध किया है। उनका कहना है कि महाश्मशान पर चिताओं के बीच होली खेलने का कोई शास्त्रीय और पौराणिक मान्यता नहीं है। यह एक कुप्रथा है, जो शास्त्रों के विरुद्ध है।

शास्त्रों के अनुसार, महाश्मशान पर बिना कारण जाने की अनुमति नहीं है। केवल किन्नर, अघोरी और तांत्रिक ही बिना कारण जा सकते हैं। शास्त्रों में महिलाओं को श्मशान घाट जाने की अनुमति नहीं है। आजकल महिलाएं और युवतियां भी बड़ी संख्या में काशी के श्मशान घाट पर चिताओं के भस्म से होली खेलती हैं। यह शास्त्रों के अनुसार गलत है।

महादेव की होली:

श्मशान में चिताओं के भस्म से होली सिर्फ महादेव यानी भगवान शिव ही खेल सकते हैं।
रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद काशी के महाश्मशान पर होली खेले जाने को लेकर विद्वानों ने बताया कि शास्त्रों में रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मणिकर्णिका घाट पर स्थित मशाननाथ के मंदिर में किन्नरों, अघोर और तांत्रिको के द्वारा भस्म चढ़ाने की परंपरा है।

काशी में होने वाली भस्म की होली धीरे-धीरे दुनिया में प्रचलित हो रही है। भस्म की होली देखने के लिए देशभर से लोग होली से पहले काशी में पहुंच रहे हैं। यह प्रथा अपने आप में अनोखी है, क्योंकि इसमें मरे हुए लोगों के चिताओं से निकलने वाला भस्म उपयोग किया जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह भस्म की होली आम लोगों के लिए नहीं है, बल्कि इसे भगवान भोलेनाथ और अघोरी किन्नरों के लिए ही समर्पित किया जाता है। लेकिन बदलते समय के साथ, अब बनारस के मणिकर्णिका घाट पर युवा और युवतियाँ भस्म की होली खेल रही हैं।

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