बरेली, उत्तर प्रदेश – पुरातात्विक दृष्टि से समृद्ध बरेली जिला उत्तर भारत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। उत्तरी पंचाल की राजधानी अहिच्छत्र के विशाल अवशेष जिले की आंवला तहसील के रामनगर गांव के पास पाए गए हैं। यहाँ से गुप्त काल से भी पहले के लगभग पांच हजार सिक्के मिले हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
पुरातात्विक खोज | History of Bareilly
बरेली के पुरातत्विक महत्व का अंदाजा दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से 11वीं शताब्दी ईस्वी तक के सांस्कृतिक क्रम से लगाया जा सकता है। जिले में तिहाड़-खेड़ा (फतेहगंज पश्चिम), पचौमी, रहटुइया, कादरगंज और सेंथल में प्राचीन टीले भी खोजे गए हैं। इन खोजों का श्रेय रोहिलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग को जाता है।
महाभारत और गौतम बुद्ध का संबंध
महाकाव्य महाभारत के अनुसार, बरेली क्षेत्र (पंचाल) को द्रौपदी का जन्मस्थान कहा जाता है। लोककथाओं के अनुसार, गौतम बुद्ध ने भी एक बार बरेली के प्राचीन किले शहर अहिच्छत्र का दौरा किया था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
बरेली जिले ने देश की आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। खिलाफत आंदोलन के दौरान बरेली में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रमुखता बढ़ी, जब महात्मा गांधी ने इस शहर का दो बार दौरा किया और कई हिंदू और मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया। गांधीजी के आह्वान पर 26 जनवरी 1930 को जिले में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। 1936 में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में बरेली में कांग्रेस का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसे जवाहरलाल नेहरू, एम.एन. रॉय, पुरुषोत्तम दास टंडन और रफी अहमद किदवई ने संबोधित किया।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता
बरेली सेंट्रल जेल में उस समय जवाहरलाल नेहरू, रफी अहमद किदवई, महावीर त्यागी, मंजर अली सोखता और मौलाना हिफाजुल रहमान जैसे प्रमुख नेता बंद थे। इन नेताओं ने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया और बरेली को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मान्यता दिलाई।
बरेली का यह समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर इसे उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण जिलों में से एक बनाता है, जो न केवल पुरातात्विक बल्कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।