IARI ने विकसित की बासमती चावल की 2 बेहतरीन किस्में, अब कम लागत में मिलेगी बंपर पैदावार

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने दो नई बासमती किस्में, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985, विकसित की हैं। ये किस्में गैर-जीएम शाकनाशी सहिष्णु हैं और धान की सीधी बुवाई में मदद करेंगी, जिससे पानी की बचत होगी और मीथेन उत्सर्जन कम होगा। यह उत्तर-पश्चिम भारत में गिरते भूजल स्तर और पर्यावरणीय चिंताओं के समाधान में सहायक होंगी। IARI की वर्तमान बासमती किस्में देश के कुल बासमती निर्यात का 95% हिस्सा हैं, और ये नई किस्में इस हिस्सेदारी को और बढ़ाने में सहायक होंगी।

इन नई किस्मों का विकास कम लागत में उच्च पैदावार सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और भारत के बासमती चावल के निर्यात में वृद्धि होगी। इन किस्मों की धान की सीधी बुवाई के लिए अनुकूलता पानी की खपत में कमी लाएगी और किसानों को खेती में सुविधा होगी।

पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की खेती से किसानों को अधिक लाभ होगा क्योंकि यह कम लागत में उच्च उत्पादन सुनिश्चित करेगा। यह पहल भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और इससे देश के बासमती चावल के निर्यात में वृद्धि होगी।

इसके अलावा, पर्यावरणीय लाभ भी होंगे जैसे मीथेन उत्सर्जन में कमी और गिरते भूजल स्तर की समस्या का समाधान। यह पहल भारतीय कृषि की गुणवत्ता में सुधार लाने और देश की कृषि प्रणाली में स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

किसानों को इन नई किस्मों और तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें। इस नई पहल का उद्देश्य न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारना है बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करना भी है।

यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और इससे देश के बासमती चावल के निर्यात में वृद्धि होगी। इससे भारतीय कृषि की गुणवत्ता में सुधार होगा और देश की कृषि प्रणाली में स्थिरता आएगी।

पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की खेती से किसानों को अधिक लाभ होगा क्योंकि यह कम लागत में उच्च उत्पादन सुनिश्चित करेगा।

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