मज़ार और शहीद: शाहजहांपुर शहर दो प्रमुख मज़ारों के लिए प्रसिद्ध है। पहला मज़ार 1857 के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद मौलवी अहमद उल्लाह शाह का है, जिन्होंने अपना संघर्ष फैजाबाद (यू.पी.) से शुरू किया और शाहजहांपुर में अपने जीवन का अंतिम समय व्यतीत किया। दूसरा मज़ार काकोरी कांड के नायक शहीद अशफ़ाकउल्ला खान का है, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया और फैजाबाद जेल में फांसी दी गई। इन मज़ारों को जोड़ने वाला मार्ग “शहीद रामप्रसाद बिस्मिल मार्ग” के नाम से जाना जाता है।
रामप्रसाद बिस्मिल और शहीद रोशन सिंह: रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान और रोशन सिंह का शाहजहांपुर से गहरा संबंध है। रामप्रसाद बिस्मिल ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आर्य समाज मंदिर में निवास किया था। उन्होंने अपने साथियों के साथ “मत्रवदे संघ” नामक संगठन की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन एकत्र करना था।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम: शाहजहांपुर ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान मौलवी अहमद उल्लाह शाह, नाजीम अली और बक्षी जैसे सेनानियों ने संघर्ष किया। दुर्भाग्यवश, मौलवी अहमद उल्लाह शाह की मृत्यु ब्रिटिश सरकार द्वारा पोवायन में कर दी गई थी।
काकोरी कांड: 9 अगस्त, 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आज़ाद और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने काकोरी रेलवे स्टेशन के पास सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना के बाद 26 दिसंबर, 1925 को 40 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, रोशन सिंह, और उनके अन्य साथियों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा दी। बिस्मिल को गोरखपुर जेल में, अशफ़ाकउल्ला खान को फैजाबाद जेल में, और रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई।
निष्कर्ष: शाहजहांपुर का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानियों के बलिदान और संघर्ष की कहानियों से भरा हुआ है। यहाँ के मौलवी अहमद उल्लाह शाह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान और रोशन सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया। इनके संघर्ष और बलिदान को आज भी शहर के महत्वपूर्ण स्थलों और मार्गों में संजोया गया है, जो न केवल इतिहास की याद दिलाते हैं बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित भी करते हैं।