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chhath puja 2024: छठ पूजा का महत्व और इतिहास

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो विशेष रूप से पूर्वी भारत, खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है और इसमें सूर्य भगवान की उपासना की जाती है, जो जीवन, ऊर्जा और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य है, सूर्य भगवान को जल अर्पित कर परिवार की सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना।

छठ पूजा का महत्व और इतिहास

छठ पूजा का उल्लेख पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी, जब द्रौपदी और पांडवों ने अपनी कठिनाइयों से मुक्ति पाने और राज्य में सुख-समृद्धि के लिए सूर्य भगवान की आराधना की थी। इसके अलावा, यह भी मान्यता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्री देवी षष्ठी माता के प्रति श्रद्धा अर्पित करने से हुई थी। षष्ठी माता को बच्चों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, और इसलिए महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुखद भविष्य के लिए इस व्रत का पालन करती हैं।

छठ पूजा का चार दिवसीय कार्यक्रम

छठ पूजा का यह चार दिवसीय अनुष्ठान बेहद कठिन नियमों और विधियों के साथ सम्पन्न होता है, जिसमें व्रत रखने वाले भक्त पूरी पवित्रता और श्रद्धा के साथ इस पूजा में भाग लेते हैं। इसमें प्रथम दिन ‘नहाय-खाय’ के साथ पूजा की शुरुआत होती है, जिसमें व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर शुद्ध भोजन का सेवन करते हैं। इसके बाद दूसरे दिन ‘खरना’ मनाया जाता है, जिसमें दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को व्रती गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास भी शुरू हो जाता है।

तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ का विशेष महत्व होता है। इस दिन शाम के समय व्रती अपने परिवार के साथ नदी, तालाब या किसी जलाशय में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह एक अत्यंत भावुक और भक्तिमय दृश्य होता है, जहां व्रती अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। अंतिम दिन, चौथे दिन ‘प्रातःकालीन अर्घ्य’ के साथ उगते सूर्य को अर्घ्य देने का अनुष्ठान सम्पन्न होता है, जिसके बाद व्रती पारण कर अपना व्रत समाप्त करते हैं।

छठ पूजा के अनुष्ठान और भोग

छठ पूजा में उपयोग होने वाले प्रसाद और सामग्रियों का भी विशेष महत्व होता है। इसमें ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, नींबू, अदरक और गाजर जैसे खाद्य पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। ठेकुआ इस पर्व का प्रमुख प्रसाद माना जाता है, जिसे गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है। सभी प्रसाद पूरी पवित्रता के साथ बनते हैं, और इन्हें बांस की टोकरी में सजाया जाता है। ये प्रसाद नदी या तालाब के किनारे सूर्य को अर्पित किए जाते हैं।

पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का संदेश

छठ पूजा के दौरान लोग प्रकृति के समीप रहते हैं और इसके महत्व को समझते हैं। सूर्य की उपासना के साथ ही लोग जलाशयों की सफाई का भी ध्यान रखते हैं। इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और जल स्रोतों की स्वच्छता का संदेश भी दिया जाता है। वर्तमान समय में जब पर्यावरण प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है, तब छठ पूजा का यह पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

छठ पूजा के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ

छठ पूजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। सूर्य के प्रकाश में मौजूद पराबैंगनी किरणों का मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। छठ पूजा के दौरान सूर्य को जल अर्पित करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। इसके साथ ही, इस पूजा से मानसिक शांति, सकारात्मक सोच और परिवार में प्रेम का संचार होता है। यह पर्व परिवार और समाज के बीच आपसी प्रेम और सहयोग को बढ़ावा देता है।

छठ पूजा का समापन और सामाजिक महत्व

छठ पूजा के समाप्त होने पर लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों में प्रसाद का वितरण करते हैं और इस प्रकार सामाजिक एकता और सामंजस्य का संदेश देते हैं। इस पर्व से लोगों में भाईचारे और परस्पर सहयोग की भावना जागृत होती है।

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि एक ऐसा पर्व है, जो परिवार, समाज और प्रकृति के प्रति प्रेम, आदर और कृतज्ञता की भावना को मजबूत करता है। छठ पूजा हमें यह सिखाता है कि जीवन में साधना, समर्पण और संकल्प का महत्व क्या है और कैसे हम अपने कर्मों से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।

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