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History of Betul district: बैतूल: मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

मध्य प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित बैतूल (Betul) जिला अपनी ऐतिहासिक विरासत, प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। यह जिला विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा हुआ है और अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। बैतूल न केवल एक प्रशासनिक जिला है, बल्कि यह क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, पुरातात्विक स्थलों और ब्रिटिश कालीन इतिहास की भी एक झलक प्रस्तुत करता है।


बैतूल का प्राचीन इतिहास

बैतूल का पुराना नाम “बड़ेल” या “बटोल” बताया जाता है, जो समय के साथ बदलकर “बैतूल” हो गया। इस क्षेत्र में मानव सभ्यता की उपस्थिति प्राचीन काल से मानी जाती है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से देखें तो बैतूल में कई ऐसे स्थल हैं, जहाँ प्राचीन काल के अवशेष मिले हैं। कहा जाता है कि यह क्षेत्र कभी गोंड राजाओं के अधीन था, जिनकी सत्ता दक्कन और मध्य भारत तक फैली हुई थी।

गोंडवाना साम्राज्य के अधीन यह क्षेत्र समृद्ध सांस्कृतिक और प्रशासनिक केंद्र था। यहाँ के जंगलों, नदियों और पहाड़ियों ने इसे एक प्राकृतिक किले के रूप में ढाल दिया था। बाद में मराठों और फिर अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया।


ब्रिटिश कालीन इतिहास

ब्रिटिश शासन के दौरान बैतूल को एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया। 1822 में जब ब्रिटिश अधिकारियों ने इस क्षेत्र की महत्ता को पहचाना, तब इसे नागपुर राज्य से अलग करके एक प्रशासनिक इकाई के रूप में विकसित किया गया। बैतूल को अंग्रेजों द्वारा “Betul” नाम दिया गया, जिसका अर्थ “पहाड़ों के बीच बसा नगर” होता है।

ब्रिटिश शासन के दौरान यहाँ रेलवे लाइन बिछाई गई और प्रशासनिक भवनों का निर्माण हुआ, जिससे यह क्षेत्र धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ा।


प्राकृतिक सौंदर्य और आदिवासी संस्कृति

बैतूल जिला घने जंगलों, पहाड़ियों और नदियों से घिरा हुआ है। यहाँ सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, मुक्कुट घाट, सालबर्डी, मुलताई और अन्य दर्शनीय स्थल मौजूद हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यह क्षेत्र विशेष रूप से गोंड, कोरकू और भील जैसी आदिवासी जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है।

यहाँ के आदिवासी अपने पारंपरिक नृत्य, गीत, वेशभूषा और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध हैं। बैतूल में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले मेलों और उत्सवों में इस सांस्कृतिक विविधता की झलक साफ दिखाई देती है।


धार्मिक और पौराणिक महत्व

बैतूल जिले में मुलताई नगर स्थित है, जिसे पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर के अवतार तपस्वी ऋषि “मूलेश्वर” की तपोभूमि माना जाता है। यहाँ से ताप्ती नदी का उद्गम भी होता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत पवित्र मानी जाती है। ताप्ती नदी को सूर्यपुत्री कहा गया है और इसका उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।


वर्तमान बैतूल और भविष्य की दिशा

आज का बैतूल एक विकसित जिला है जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है। यहाँ की जलवायु कृषि के लिए अनुकूल है और यहाँ सोयाबीन, गेहूं, चना, तुअर जैसी फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं।

शासन द्वारा आदिवासी कल्याण, पर्यटन और पारंपरिक हस्तशिल्प के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे यह जिला विकास की नई ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है।

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