भारत कृषि प्रधान देश है और गेहूं इसकी मुख्य फसलों में से एक है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार की भूमि पर गेहूं की खेती का बड़ा हिस्सा है। हर साल किसान बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता के लिए नई किस्मों की तलाश में रहते हैं। ऐसे में, कृषि वैज्ञानिकों ने एक नई किस्म के गेहूं को विकसित किया है, जो यूपी-बिहार की जलवायु और मिट्टी के लिए बेहद उपयुक्त है। इस लेख में हम इस गेहूं की विशेषताओं और इसके लाभों पर चर्चा करेंगे।
इस किस्म की खासियत
यह नई किस्म, जिसे ‘एचडी 3226’ या ‘पुसा यशस्वी’ के नाम से जाना जाता है, को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित किया गया है। इसे खासतौर पर उन क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है जहां की जलवायु में सर्दियों में ठंड और गर्मियों में तेजी से बढ़ते तापमान का प्रभाव होता है।
इस गेहूं की फसल में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएं हैं:
- उच्च उपज क्षमता: यह किस्म प्रति हेक्टेयर 50-55 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है, जो पारंपरिक किस्मों से अधिक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह किस्म पीली रतुआ (yellow rust) और भूरे रतुआ (brown rust) जैसे प्रमुख रोगों के प्रति प्रतिरोधक है।
- तेज पकने का समय: इस किस्म को 110-120 दिनों में काटा जा सकता है, जो समय पर फसल कटाई और दूसरी फसल की तैयारी के लिए अनुकूल है।
- अच्छी गुणवत्ता का दाना: इसके दाने मोटे और चमकदार होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाते हैं।
यूपी-बिहार के लिए क्यों है उपयुक्त?
उत्तर प्रदेश और बिहार की भूमि में जलधारण क्षमता अधिक होती है और जलवायु में सर्दियों की ठंड और ग्रीष्म ऋतु का तापमान दोनों ही प्रबल होते हैं। यह किस्म इन परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन करती है। इसके अलावा, यह उन क्षेत्रों में भी उपयुक्त है जहां सिंचाई के साधन सीमित हैं।
इस किस्म की जड़ें गहरी होती हैं, जो कम पानी में भी मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व खींचने में सक्षम होती हैं। यह फसल न केवल किसानों को अधिक उत्पादन देती है, बल्कि पानी और खाद की बचत करके लागत को भी कम करती है।
खेती के टिप्स
- भूमि की तैयारी: इस किस्म के गेहूं के लिए दो बार गहरी जुताई और उसके बाद हल्की जुताई उपयुक्त है।
- बीज की मात्रा: प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- सिंचाई: इसकी सिंचाई के लिए 3-4 बार पानी की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुआई के 21 दिनों बाद और फिर 40, 60, और 80 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
- उर्वरक का उपयोग: नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश का संतुलित उपयोग फसल की उपज बढ़ाने में सहायक होता है।
आर्थिक लाभ
इस किस्म की फसल से किसानों को पारंपरिक किस्मों की तुलना में 20-25% अधिक लाभ हो सकता है। अच्छी गुणवत्ता और अधिक उत्पादन के कारण इसे मंडी में बेहतर कीमत मिलती है। इसके साथ ही, रोग प्रतिरोधक होने के कारण इसमें दवाइयों का खर्च भी कम होता है।
किसानों के लिए सरकार की मदद
उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार ने किसानों को इस नई किस्म के बीज उपलब्ध कराने के लिए सब्सिडी की योजना शुरू की है। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को इस नई किस्म के बारे में जागरूक कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के लिए ‘एचडी 3226’ या ‘पुसा यशस्वी’ गेहूं की किस्म एक वरदान साबित हो सकती है। यह फसल न केवल अधिक उत्पादन देती है, बल्कि किसानों की आय को भी बढ़ाने में मददगार है। अगर सही तरीके से खेती की जाए, तो यह किस्म किसानों के लिए समृद्धि का द्वार खोल सकती है।
नोट: इस किस्म के बीज की जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या सरकारी कृषि कार्यालय से संपर्क करें।