देवरिया जिले के हनुमान मंदिर में बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत के अवसर पर सैकड़ों महिलाएं जुटीं। यह व्रत पूर्वांचल में खास महत्व रखता है, जहां महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए यह कठिन व्रत रखती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन महिलाएं बिना जल ग्रहण किए 24 घंटे से अधिक समय तक निर्जल व्रत करती हैं, और मंदिरों में जाकर भगवान से अपने पुत्रों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस अवसर पर हनुमान मंदिर को विशेष रूप से सजाया गया था, जहां सुबह से ही महिलाओं का तांता लगा रहा।
पूर्वांचल में व्रत का महत्व
पूर्वांचल के विभिन्न जिलों, विशेषकर देवरिया, गोरखपुर, आजमगढ़, और बनारस में इस व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से मातृत्व और समर्पण का प्रतीक है। जीवित्पुत्रिका व्रत की मान्यता है कि जो महिलाएं इस दिन कठोर नियमों का पालन करती हैं और जल का त्याग करती हैं, उनके पुत्रों की आयु दीर्घ और जीवन सुखमय होता है। इस व्रत का पालन करने वाली महिलाएं अपनी गहरी श्रद्धा और भक्ति से भगवान की आराधना करती हैं।
पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यक्रम
हनुमान मंदिर पर जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन विशेष आयोजन किए गए थे। मंदिर को फूलों, दीपों और रोशनी से सजाया गया था, जिससे धार्मिक माहौल और भी आकर्षक बन गया था। सैकड़ों महिलाएं सुबह से ही मंदिर में पूजा करने के लिए इकट्ठी हो गईं। इस अवसर पर महिलाओं ने बरियार के पेड़ की पूजा की, जो इस व्रत का एक अभिन्न अंग है। ऐसा माना जाता है कि बरियार के पेड़ के नीचे पूजा करने से व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। महिलाएं पेड़ के नीचे बैठकर भगवान से प्रार्थना करती हैं और अपने पुत्रों की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।
पूजा के दौरान महिलाओं ने धार्मिक कथा भी सुनी। मंदिर में उपस्थित पुजारियों ने जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा का वाचन किया और भगवान की महिमा का बखान किया। इस कथा को सुनने के लिए महिलाओं में विशेष उत्साह था। कथा सुनने के बाद महिलाओं ने एकत्रित होकर विशेष पूजा-अर्चना की और भगवान से आशीर्वाद लिया।
व्रत की कठिनाई और नियम
जीवित्पुत्रिका व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं, जिसका अर्थ है कि वे व्रत के दौरान पानी की एक बूंद तक नहीं पीतीं। यह व्रत 24 घंटे से भी अधिक समय तक चलता है, जो महिलाओं के लिए अत्यधिक कठिन होता है। इस व्रत के दौरान महिलाएं अन्न, जल और फल का सेवन नहीं करतीं और मंदिर में जाकर पूजा करती हैं। मान्यता है कि जितना कठिन व्रत होता है, उतना ही यह शुभ और फलदायी माना जाता है।
इस व्रत में महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। माना जाता है कि जो महिलाएं पूरे नियम और श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करती हैं, उनके पुत्र दीर्घायु, स्वस्थ और समृद्ध होते हैं।
समर्पण और मातृत्व का प्रतीक
जीवित्पुत्रिका व्रत महिलाओं के समर्पण और मातृत्व की भावना का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पुत्रों के प्रति अपने असीम प्रेम और समर्पण को दर्शाती हैं। यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या का ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक समर्पण का भी प्रतीक है।
व्रत के दौरान महिलाएं अपने जीवन की सभी चिंताओं और कष्टों को भूलकर केवल भगवान और अपने पुत्रों के लिए प्रार्थना करती हैं। यह व्रत उन महिलाओं के लिए भी एक आत्मिक संतोष का माध्यम बनता है, जो अपने पुत्रों की कुशलता और दीर्घायु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस व्रत का महत्व अत्यधिक है और इसे पूरे विधि-विधान से करने पर भगवान का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।
व्रत की समाप्ति और परंपराएं
जीवित्पुत्रिका व्रत की समाप्ति पर महिलाएं मंदिर में सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना करती हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस व्रत की समाप्ति पर महिलाएं अपने घरों में विशेष पकवान भी बनाती हैं और अपने परिवार के साथ व्रत का पारण करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं अपनी पुत्रों की लंबी उम्र, स्वस्थ और सुखमय जीवन की कामना करती हैं।
यह व्रत पूर्वांचल के सभी हिस्सों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।